है कौन वो ? क्या उसका है ? गांव है ? शहर है या देश है ? या सारी दुनिया उसकी है ? यह मज़दूर है , पाया जाता हर जगह ज़रूर है | पर कितना इनका अपमान किया, नाम रखा पर काम लिया | खबरों का एक अंग भी ना ठंग से इन्हें दिया इनके दुख दर्द और कष्टों को बस कुछ आंकड़ों में समेट दिया इनकी व्यथा को सबने ही तो है अनसुना किया ना दिखी कोई आस आसरे की जब जरुरत थी उन्हें सहारे की तालाबंदी में जब सबका घर था उनके जीवन में नया प्रश्न था कहाँ का वो निवासी है , आवासी है ? या बस दास ही है ? जीवन भी नहीं है उसका जब चाहे कोई रोक लेता है | मन चाहे जब जाने को कहता है, वह अपने दम पे ही चलता है कभी भूख कभी प्यास से मरता है जीने के लिए हर पल संघर्ष करता है | आपदा में भी पलायन का किराया तक खुद ही भरता है बाढ़ की तरह उनका जमावड़ा जब शहरों से बहता है सड़क, नदी और रेल की पटरी किनारे बेबस सा दिखता है | क्या तुमको यह भयावह सा नहीं लगता है ? आज यह वर्ग है कलको तुम्हारा भी तो हो सकत...